जाने भगवान शिव के सबसे ऊंची ज्योतिर्लिंग केदारनाथ की उत्पत्ति की कहानी!

भगवान शिव का पांचवा ज्योतिर्लिंग, जो उत्तराखंड की ऊंची पहाड़ी में स्थित है, यह ज्योतिर्लिंग केदारनाथ के नाम से प्रसिद्ध है! इस पांचवे ज्योतिर्लिंग का कपाट श्रद्धालु भक्तों के लिए मात्र 6 माह के लिए खोला जाता है! सर्दियों के मौसम में यहां काफी ज्यादा बर्फबारी होती है, जिसके चलते, मंदिर का कपाट श्रद्धालु भक्तों के लिए बंद कर दिया जाता है! इस ज्योतिर्लिंग को केदारनाथ के नाम से प्रसिद्ध मिली है! यहां पहुंचने के लिए भक्तों को लगभग 18 किलोमीटर की कठिन पहाड़ी रास्तों की चढ़ाई करनी पड़ती है! 

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई! 

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास भगवान विष्णु और पांडवों से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर का जीर्णोद्वार गुरु शंकराचार्य के द्वारा कराया गया था। काफी समय पहले भगवान विष्णु के अवतार नर नारायण जी भगवान शंकर का पार्थिव शिवलिंग बनाकर शिवजी का रोज पूजा करते थे। जिससे भगवान शंकर खुश होकर उन्हें वरदान मांगने के लिए बोले। नर नारायण जी ने भगवान शिव से यह वरदान मांगा की शिवजी आप हमेशा यही विराजमान रहे। शिवजी ने अपने भक्त को वरदान देते हुए बोले कि मैं अब से यही रहूंगा, और यह पूरा घाटी के क्षेत्र के नाम से मशहूर होगा। 

पांचवे ज्योतिर्लिंग केदारनाथ की मान्यता पांडवों से भी जुड़ी हुई है! 

द्वापर युग में महाभारत जब खत्म हुआ, तब पांडव भगवान शिव की खोज में केदार क्षेत्र में आ गए जहां भगवान शिव ने पांडवों को बेल के रूप में दर्शन दिया। इस मंदिर का निर्माण गुरु शंकराचार्य ने नौवीं शताब्दी में करवाया था। इस मंदिर की ऊंचाई समुद्रतल से लगभग 3583 मीटर है। केदारनाथ मंदिर से हिमालय पर्वत काफी नजदीक है। केदारनाथ मंदिर का निर्माण केदार क्षेत्र के राजा जन्मजेय जी ने करवाया था। केदारनाथ जी के मंदिर के ठीक सामने नंदेश्वर जी की प्रतिमा विराजित है। मंदिर में रोज शाम को श्रृंगार करने के बाद आरती किया जाता है। अगर आप केदारनाथ जाना चाहते हैं, तो ट्रेन पकड़ के पहले हरिद्वार चले जाए और वहां से शेयर टैक्सी या बस से गौरीकुंड चले जाएं तथा वहां से आप पैदल यात्रा कर केदारनाथ जी के मंदिर के पास पहुंच सकते हैं।